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यमराज यदि मृत्यु के देवता हैं, तो शनि कर्म के दंडाधिकारी हैं. गलती जाने में हुई हो या अनजाने में, दण्ड तो भोगना ही पड़ेगा.
शनिवार का व्रत करने वाले शनिभक्त को प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि-विधान से पूजन करनी चाहिए. ऐसा करने से शनिदेव भक्त पर अपनी कृपा बरसाते हैं.
कहते हैं जिस व्यक्ति पर शनि की ढैया या साढ़ेसाती हो या फिर जाे कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव के कारण किसी रोग से पीड़ित है अगर वे इन उपायों को आजमाते हैं तो उसे शनिदेव की विशेष कृपा की प्राप्ति होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.
1. दोनों समय भोजन में काला नमक और काली मिर्च का प्रयोग करें.
2. शनिवार के दिन बंदरों को भुने हुए चने खिलाएं और मीठी रोटी पर तेल लगाकर काले कुत्ते को खाने को दें.
3. यदि शनि की अशुभ दशा चल रही हो तो मांस-मदिरा का सेवन न करें.
4. प्रतिदिन पूजा करते समय महामृत्युंजय मंत्र ऊं नमः शिवाय का जाप करें शनि के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है.
5. घर के किसी अंधेरे भाग में किसी लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भरकर उसमें तांबे का सिक्का डालकर रखें.
6. शनि ढैया के शमन के लिए शुक्रवार की रात्रि में 8 सौ ग्राम काले तिल पानी में भिगो दें और शनिवार को प्रातः उन्हें पीसकर एवं गुड़ में मिलाकर 8 लड्डू बनाएं और किसी काले घोड़े को खिला दें. आठ शनिवार तक यह प्रयोग करें.
7. शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए शनिवार के दिन काली गाय की सेवा करें. पहली रोटी उसे खिलाएं, सिंदूर का तिलक लगाएं, सींग में मौली (कलावा या रक्षासूत्र) बांधे और फिर मोतीचूर के लड्डू खिलाकर उसके चरण स्पर्श करें.
8. प्रत्येक शनिवार को वट और पीपल वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पूर्व कड़वे तेल का दीपक जलाकर शुद्ध कच्चा दूध एवं धूप अर्पित करें.
9. शनिवार को ही अपने हाथ के नाप का 29 हाथ लंबा काला धागा लेकर उसको मांझकर(बंटकर) माला कि तरह गले में पहनें.
10 यदि शनि की साढ़ेसाती से ग्रस्त हैं तो शनिवार को अंधेरा होने के बाद पीपल पर मीठा जल अर्पित कर सरसों के तेल का दीपक और अगरबत्ती लगाएं और वहीं बैठकर क्रमशः हनुमान, भैरव और शनि चालीसा का पाठ करें और पीपल की सात परिक्रमा करें.
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